
मिर्जापुर के रामगया घाट पर पितृपक्ष की अमावस्या पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। हजारों लोगों ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए गंगा तट पर पिंडदान और तर्पण किया।
इस स्थान का धार्मिक महत्व त्रेतायुग से जुड़ा है। मान्यता है कि लंका विजय के बाद अयोध्या लौटते समय भगवान श्रीराम ने मुनि वशिष्ठ के निर्देश पर यहीं अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ थे। तभी से यह स्थान रामगया घाट के नाम से जाना जाता है।
वृहद औसनस पुराण, मार्कण्डेय पुराण और वाल्मीकि रामायण में इस स्थान का विशेष उल्लेख है। विद्वानों के अनुसार, यहां पिंडदान का फल गया के विष्णुपद मंदिर के समान है। रामगया घाट पर आज भी वह शिला मौजूद है जिस पर श्रीराम के चरण चिह्न अंकित हैं।
परंपरा के अनुसार श्रद्धालु पहले गंगा स्नान करते हैं। फिर मुंडन कराकर पिंडदान करते हैं। पिंडदान में जौ, तिल, चावल, शहद और खोवा या जौ के आटे का प्रयोग होता है। मान्यता है कि यहां श्रद्धा से किए गए पिंडदान से पितर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
धर्माचार्य कृष्ण चंद्र मिश्र के अनुसार, यहां पिंडदान करने से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है। विन्ध्य पर्वत से निकलती गंगा की धारा के तट पर स्थित यह घाट करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है। जिला प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं।
रिपोर्ट प्रभाकर शर्मा